भगवद गीता - अध्याय २ पद ३९ और ४० | Bhagvad Gita Gyan | Artha

By : Artha

Published On: 2019-02-05

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भगवद गीता - अध्याय २ - पद ३९ और ४०

भगवद गीता के इस वीडियो में हम देखेंगे की भगवान कृष्ण अर्जुन को बुद्धि योग के बारे में क्या बताते है

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१ उनतालीसवां श्लोक इस प्रकार है :
एषा तेऽभिहिता साङ्‍ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु ।
बुद्ध्‌या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ।।३९।।

२ इस श्लोक का अर्थ है;
हे पृथापुत्र ! मैंने तुम्हे आत्मा की प्रकृति के बारे में जो आध्यात्मिक ज्ञान दिया वह सांख्य योग का विषय था। अब में तुम्हे बुद्धि के अभ्यास के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसे बुद्धि योग कहते है। और तुम जब बुद्धि से कर्म करोगे तो अपने कर्मों के बंधन से स्वयं को मुक्त कर पाओगे

३ चालीस वे श्लोक की पंक्तिया इस प्रकार है;
यनेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात ।।४०।।

४ इसका भावार्थ है
इस प्रकार कर्म करने से न तो कोई हानि होती है और न ही फल-रूप दोष लगता है, अपितु इस निष्काम कर्म-योग की थोडी़-सी भी प्रगति जन्म-मृत्यु के महान भय से रक्षा करती है।

५ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिये की भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बुद्धि के बारे में क्या ज्ञान दिया है

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